Lekhika Ranchi

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लोककथा संग्रह 2

लोककथ़ाएँ


सारंगी वादक : रूसी लोक-कथा

एक समय की बात है, एक राजा और एक रानी थे, जो प्रसन्नता से रहते थे। परन्तु जैसे -जैसे समय बीता, राजा व्याकुल होने लगा। उसके मन में दुनिया देखने की लालसा उत्पन हो रही थी। वह युद्ध में अपनी शक्ति आजमाना चाहता था औय प्रतिष्ठा व सम्मान अर्जित करना चाहता था।

उसने अपनी सेना को तैयार किया। रानी को प्यार से अलविदा कहा और फिर सेना सहित दूर देश के दुष्ट राजा से युद्ध करने चल दिया।

राजा और उसकी सेना कई माह तक आगे बढ़ते रहे। जिस से भी उनका सामना होता उसे वह हराते गए। फिर वह एक घाटी में पहुँचे, जहाँ दुष्ट राजा की सेना उनकी प्रतीक्षा कर रही थी।

राजा की उस युद्ध में पराजय हुई, उसके सैनिक भाग आए और राजा बंदी बना लिया गया। रात में उसे जजीरों से बाँध कर रखा जाता। दिन में उसे खेतों में हल चलाना पड़ता।

तीन वर्ष बाद अपनी रानी को राजा एक संदेश भेजने में सफल हुआ उसने पत्र में लिखा कि सारे महल बेच कर, सारा खाजाना गिरवी रख कर पैसे इकट्ठे किये जाये और उसे मुक्त कराया जाये।
पत्र पढ़ कर रानी फूट-फूट कर रोने लगी "मैं क्या करूँ?"

वह सोचने लगी अगर मैं स्वयं जाती हूँ तो दुष्ट राजा मुझे भी कैद कर लेगा। मैं एक सेविका को भेज सकती हूँ, लेकिन इतने धन के लिए में किसी का विश्वास कैसे कर सकती हूँ?

उसने कई घंटे सोचा। फिर एक विचार उसके मन में आया। उसने अपने लंबे, सुंदर बाल काट डाले और एक लड़के की पोशाक पहन ली। फिर उसने अपनी सारंगी ली और, किसी से कुछ बताए बिना, अपने पति की तलाश में वह निकल पड़ी।

उसने कई देशों की यात्रा की और कई नगर देखे, आखिरकार, वह उस महल के पास पहुँची जहाँ दुष्ट राजा रहता था, उसके महल का चक्कर लगाया और कैदखाने की मीनार लिया

वह महल के प्रवेश द्वार पर लौट आई। विशाल गन में खड़े होकर वह सारंगी बजाने लगी। हर कोई रूक कर उसका गीत सुनने लगा।

शीघ्र ही दुष्ट राजा ने उसकी मधुर आवाज़ सुनी।
मैं आया हूँ इक दूर देश से, यहाँ इस अनजाने प्रदेश में।
एक अकेला मैं घूमता, लिए सारंगी अपने हाथ में।
मैं सुनाता बातें फूलों की, खिलते हैं जो वर्षा और धुप में
या प्यार के प्रथम मिलन की, और जो डूब गए वियोग में।
या अभागे उस बंदी की, कैद है जो इन ऊँची दीवारों में,
ये उन दुःखी दिलों की, जिनके निकट नहीं हैं अपने।
अगर सुन रहे हैं गीत मेरा, विराजमान हैं जो अपने महल में।
ओह, पूरी करो कामना मेरी, आया हूँ जो मैं लिए मन में

दुष्ट राजा ने यह मर्मस्पर्शी गीत सुना तो उसने आदेश दिया कि गायक को उसके समक्ष उपस्थित किया जाये।
सारंगी वादक, तुम्हारा स्वागत है उसने कहा, "तुम कहाँ से आए हो?

"महाराज, मेरा देश यहाँ से बहुत दूर है कई समुद्र के पार है, उसने कहा, 'कई वर्षों से मैं संसार में भ्रमण कर रहा हूँ, मैं अपने संगीत से अपनी आजीविका कमाता हूँ "

तो फिर कुछ दिन यहाँ रहो, राजा ने कहा "जब तुम जाना चाहोगे तब तुम्हारे संगीत के लिए मैं तुम्हें वही दूंगा जो तुम्हारी इच्छा होगी।।।।। तुम्हारे मन की कामना अवश्य पूरी करूँगा।

सारंगी वादक महल में ठहर गई। वह लगभग सारा दिन राजा को सारंगी बजा कर और गीत गाकर सुनाती। उस नवयुवक के संगीत को सुन कर राजा का मन न भरता था। वास्तव में वह खाना-पीना और लोगों को सताना भी भूल गया।
एक दिन उसने कहा, तुम्हारा संगीत और गाना सुन कर मुझे ऐसा लगता है कि जैसे किसी कोमल हाथ ने मेरी चिंता और संताप को मिटा दिया है।"
तीन दिन के बाद संगीत वादक ने राजा से वापस जाने की अनुमति माँगी। वचन अनुसार राजा ने पूछा कि उसे क्या पारितोषिक चाहिए।
"महाराज, उसने कहा। "अपना एक कैदी मुझे दे दीजिए।

आपके पास बहुत कैदी है। अपनी यात्रा के लिए एक साथी पाकर मुझे खुशी होगी। उसकी वाणी सुन कर मुझे आपकी याद आएगी और मैं आपको धन्यवाद करूंगा।"
फिर मेरे साथ आओ, राजा ने कहा। "जिसे भी चुनना चाहते हो, चुन लो।" और वह स्वयं सारंगी वादक को कैद खाने में ले गया।

रानी कैदियों के बीच से चलने लगी। उसने एक युवक के कपड़े पहन रखे थे इसलिए उसका पति उसे पहचान न पाया, तब भी नहीं जब वह उसके साथ वहाँ से चल दिया।

उसने मान लिया कि अब वह सारंगी वादक का बंदी था। जब वह अपने देश के निकट पहुँचे तो राजा ने सारंगी वादक से कहा, "मैं साधारण बंदी नहीं हूँ। मुझे मुक्त कर दो, बदले में मैं तुम्हें पुरस्कार दूंगा।"
मुझे कोई पुरस्कार नहीं चाहिए, सारंगी वादक ने उत्तर दिया।
आप निश्चिंत होकर जायें।"
फिर मेरे साथ चलो, युवक। मेरे महल में मेरे अतिथि बन कर रहो,' कृतज्ञ राजा ने कहा।
एक दिन मैं आप से मिलने आऊंगा, उसने कहा। और इस तरह दोनों अपने-अपने रास्ते चल दिए।

राजा अपने राज्य में पहुँच कर अपनी मंत्री परिषद से मिला और बोला "देखो मेरी पत्नी कैसी है? मैं कैद खाने में बंद था और मैंने उसे संदेश भेजा। क्या मेरी सहायता करने के लिए उसने कुछ किया? नहीं।"

एक मंत्री ने कहा, "महाराज, जब सूचना मिली की आप बंदी बना लिए गए हैं तो रानी साहिबा गायब हो गई। वह तो आज ही लौटी हैं।।

रानी छोटे रास्ते से महल में पहुंच गई। राजा के आने से पहले उसने अपनी पोशाक बदल ली। एक घंटे बाद, लोग चिल्लाने लगे कि राजा लौट आए थे।
वह उनसे मिलने गई। राजा ने सब का प्यार से अभिवादन किया, सिवाय रानी के। उसने रानी की ओर देखा भी नहीं।
इस बीच रानी ने एक लंबे चोगे में अपने को छिपा लिया। वह चुपके से आंगन में आ गई और गाने लगी।
पहले की तरह उसने इन शब्दों से अपने गीत का अंत किया।

अगर सुन रहे हैं गीत मेरा, विराजमान हैं जो अपने महल में।
ओह, पूरी करो कामना मेरी, आया हूँ जो मैं लिए मन में

जैसे ही राजा ने यह गीत सुना वह बाहर ऑगन की ओर भागा और संगीत वादक को महल के अंदर ले आया।

उसने अपनी परिषद को बताया, “यही है वह युवक जिसने मुझे कैद से रिहा कराया था!" फिर सारंगी वादक से उसने कहा, "तुम मेरे सच्चे मित्र हो। मुझे तुम्हारे मन की कामना पूरी करने दो।”

रानी ने कहा, "मुझे विश्वास है कि दुष्ट राजा से आप कम उदार न होंगे। उसने मेरे मन की कामना पूरी की और मुझे वह मिला जो मैं पाना चाहता था मुझे आप मिले और अब आपको खो देने का मेरा इरादा नहीं है!"

इतना कह कर, उसने अपना चौगा उतार कर फेंक दिया, तब राजा को समझ आया कि रानी, जिसे वह सदा प्यार करता था, वास्तव में उसकी सच्ची अर्धांगिनी थी।

  ***
साभारः लोककथाओं से।

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